ब्राउन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डीन डॉ. आशीष के. झा ने गुरुवार को कहा कि कोरोना वैक्सीन डेवलपमेंट में कोई शॉर्ट कट इस्तेमाल नहीं किया गया है। हिन्दुस्तान टाइम्स की 18वीं लीडरशिप समिट में उनसे सवाल पूछा गया था कि 10 महीने में कोरोना वैक्सीन कैसे बनी? इस सवाल के जवाब में आशीष के झा ने कहा, ‘वैक्सीन डेवलपमेंट में कई चरण होते हैं, जानवरों पर परीक्षण होता है, फिर मानव परीक्षण होता है, पैसे जुटाए जाते हैं, फिर उत्पादन होता है। लेकिन कोरोना वैक्सीन डिवेलपमेंट में सभी कामों को एक साथ किया गया है। जानवरों और मानवों पर एक साथ परीक्षण किया गया। उत्पादन भी चल रहा है। पहले सार्स वायरस के लिए वैक्सीन बनाने में काफी समय लगा, लेकिन कोरोना इसका कजिन है और हमें इसलिए इसे समझने में ज्यादा समय नहीं लगा।’
हिन्दुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट 2020 के पहले दिन ‘कोरोना महामारी के बीच कहां खड़े हैं हम’ विषय पर चर्चा करते हुए एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि फाइजर के साथ सरकार की बात चल रही है। लेकिन इसको लेकर चुनौती होगी। क्योंकि इसे -70 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखना होता है। लेकिन हमारे पास एस्ट्रोजेनका वैक्सीन भी भी है, रूसी वैक्सीन का तीसरा ट्रायल चल रहा है। अगले साल की पहली तिमाही में वैक्सीन मिल सकती हैं। ग्रामीण इलाकों तक इन्हें पहुंचाने की चुनौती है।
वैक्सीन डिवेलपमेंट पर खुशी
डॉ. झा ने कहा कि कोरोना वैक्सीन बनाने को लेकर जो काम चल रहा है कि उससे वह बेहद उत्साहित हैं। उन्होंने कहा, ‘यदि 60 पर्सेंट प्रभावी वैक्सीन भी बनती तो मैं खुश होता, मुझे 70 पर्सेंट प्रभावी वैक्सीन की उम्मीद नहीं थी। लेकिन अब हमारे पास मोडर्ना और फाइजर दो वैक्सीन हैं जो कि 95 फीसदी तक प्रभावी हैं। यह बेहद शानदार और आश्चर्यजनक है।
रणदीप गुलेरिया ने भी वैक्सीन विकास को लेकर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि अगली चुनौती यह है कि कैसे सभी लोगों का टीकाकरण किया जाए। आपको कई वैक्सीन में से एक का चुनाव करना है। यह देखना दिलचस्प होगा कि किसका टीका सबसे अच्छा पाया जाता है।
Source link
Recent Comments